इमका राजस्थान की सालाना मीटिंग, मीडिया में भाषा, महिला पत्रकारों की स्थिति पर हुई चर्चा
इमका राजस्थान की सालाना मीटिंग, मीडिया में भाषा, महिला पत्रकारों की स्थिति पर हुई चर्चा
जयपुर भारतीय जनसंचार संस्थान एलुमनाई एसोसिएशन के राजस्थान चैप्टर की सालाना मीटिंग होटल जयपुर अशोक में हुई। इसमें राजस्थान भर में अलग-अलग क्षेत्र और पदों पर काम कर रहे संस्थान के करीब 30 पूर्व विद्यार्थी एकजुट हुए। भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व विद्यार्थी प्रदेश में कई बड़े पदों पर काम कर रहे हैं। इमका एलुमनाई प्रदेश के मीडिया संस्थान, ब्यूरोक्रेसी, सरकारी पदों पर हैं। कई लोगों ने हाल में पूरे हुए दोनों चरणों के चुनाव पर अपना अनुभव भी साझा किया। मीटिंग में इमका राजस्थान चैप्टर के अध्यक्ष सचिन सैनी, महासचिव राम मीना, प्रोफ़ेसर शालिनी जोशी, वरिष्ठ पत्रकार अमृता मौर्या, प्रो. रतन सिंह शेखावत, पत्रकार माधव शर्मा, यूनिसेफ़ में कम्युनिकेशन हेड अंकुश सिंह, ऋषभ शर्मा सहित कई एलुमनी ने संबोधित किया। इमका इस साल जयपुर से पहले लखनऊ, अहमदाबाद, गुवाहटी, मुंबई, पटना, देहरादून और दिल्ली में भी सालाना मीटिंग आयोजित कर चुका है।
मीडिया में भाषा और शब्द चयन पर हुई चर्चा
मीटिंग के दौरान मीडिया की भाषा, शब्द चयन और महिलाओं की स्थिति पर भी विमर्श हुआ। अखबारों में स्थानीय बोली- भाषा के शब्दों के इस्तेमाल के पक्ष-विपक्ष में चर्चा हुई. दिल्ली में हिंदुस्तान टाइम्स डिजिटल के भाषा संपादक प्रभाष झा ने अखबारों के साथ-साथ डिजिटल मीडिया में स्थानीय भाषा के शब्दों के इस्तेमाल पर जोर दिया. झा का कहना है कि हम मीडिया के लोग कम्यूनिकेशन क्षेत्र में काम करते हैं इसीलिए हमें ऐसी भाषा में लिखना चाहिए जिससे उस क्षेत्र की जनता ज्यादा से ज्यादा जुड़ी हो. उदाहरण के लिए बिहार में अखबार भौकाल, धरे जैसे शब्दों का इस्तेमाल खबरों में करते हैं, लेकिन यही शब्द राजस्थान में उसी तरह से संवाद कर पाएंगे, ऐसा जरूरी नहीं है. राजस्थान में मावठ शब्द अखबारों में खूब छपता है, लेकिन दिल्ली, झारखंड, बिहार में पत्रकार इस शब्द का मतलब नहीं जानते. इसीलिए स्थानीयता अखबारों की भाषा में जरूरी तत्व है. हालांकि डिजिटल मीडिया के पहुंचने से अब दूसरी भाषाओं से शब्द आम लोगों में जल्दी पहुंच बना रहे हैं. इसके उलट ऋषभ शर्मा ने भाषा के मानकीकरण की भी जरूरत बताई. ताकि भाषायी शुद्धता बनी रहे। वहीं, यूनिसेफ में कम्यूनिकेशन हेड अंकुश सिंह ने कहा कि अंग्रेजी में हर साल-दो साल में नए शब्दों की डिक्शनरी आ जाती है. अंग्रेजी मीडिया उन शब्दों का इस्तेमाल करता है. जबकि हिंदी में नई डिक्शनरी कम आती हैं. जो आती हैं, उनमें साहित्यिक शब्दों की भरमार होती है. इन नए शब्दों का इस्तेमाल हिंदी मीडिया ज्यादा नहीं करता. इसमें बदलाव की जरूरत है।
पत्रकार माधव शर्मा ने कहा कि हिंदी मीडिया में भाषा और शब्दों के इस्तेमाल को लेकर काफी कोताही बरती जाती है. अक्सर हिंदी पट्टी मीडिया में हम देखते हैं कि किसी महिला से हुई बलात्कार की खबर को उसकी अस्मत और इज्जत से जोड़कर लिखा जाता है, लेकिन बलात्कार एक गंभीर अपराध है. इसे पीड़ित महिला की इज्जत से नहीं जोड़ा जा सकता।
“न्यूजरूम में बढ़नी चाहिए महिला पत्रकार”
देश की मीडिया में आज भी महिला पत्रकारों की संख्या कम है. प्रोफेसर शालिनी जोशी ने कहा कि पत्रकारिता संवेदनशील लोगों का पेशा है. महिलाओं के न्यूजरूम में होने से संवेदनशील मुद्दों पर अच्छा काम किया जा सकता है. न्यूजरूम में भी संवेदनशीलता लाई जा सकती है, लेकिन आज भी क्षेत्रीय अखबारों में महिला पत्रकारों की संख्या बेहद कम है. हालांकि डिजिटल मीडिया में बड़ी संख्या में महिला पत्रकार आई हैं, लेकिन अखबारों में कई वजहों से महिलाओं की संख्या अभी भी कम है। वरिष्ठ पत्रकार अमृता मौर्या ने कहा कि मीडिया समाज का ही हिस्सा है। जैसा समाज है, वैसा आपका मीडिया भी होगा. मैंने अपने करियर में देखा है कि महिला पत्रकारों को पुरुष पत्रकारों की तुलना में कमजोर बीट दी जाती हैं. उन्हें जज किया जाता है. यही काम समाज भी कई तरह से करता है. हालांकि इसमें सुधार हो रहा है, लेकिन इस सुधार की रफ्तार काफी कम है।